तनाव जो हमें तोड़ कर रख देता है
क्या आप अपने अतीत में हुई ऐसी कुछ घटनाओं को याद कर सकते हैं, जब आप बेहद तनाव ग्रस्त (stress) रहे हों? आपके भीतर स्ट्रेस उत्पन्न हुआ, जिसने आप को गहराई तक तोड़ दिया? क्या वह तनाव संबंधों की वजह से निर्मित हुआ था या बेहतर प्रदर्शन करने के लिए दबाव के कारण? जब आपने इस स्ट्रेस को अनुभव किया, तब उससे बाहर आने के लिए आपने क्या कदम उठाएँ थे? आगे बढ़ने से पहले इन सवालों पर कुछ देर जरूर सोचिए ।
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कई बार ऐसा होता है कि बेहतर प्रदर्शन करने का तनाव बेहद सफल लोगों को भी मानसिक एवं शारीरिक तौर पर तोड़ कर रख देता है । यह तनाव कामकाजी जीवन में प्रदर्शन पर विपरीत असर तो डालता ही है, साथ ही साथ रचनात्मकता को भी नष्ट कर देता है । हम सबको कभी ना कभी यह महसूस होता है कि तनाव के कारण हम अपने सामर्थ्य, ऊर्जा एवं उत्साह को खो देते हैं । इसी तनाव के चलते कभी-कभी हमें अपने सपने जिन से हम असीम प्यार करते हैं, वही बोझ प्रतीत होने लगते हैं ।
शुरू-शुरू में जो काम हमारे दिल के बहुत निकट था, जिसे करते समय हम खुद को भूल जाते थे, तनाव के चलते वही काम हमें थका देता है । हर वक्त दूसरों की तुलना में प्रदर्शन करने की अपेक्षा से हम स्वयं तनाव से घिरने लगते हैं । हर पल श्रेष्ठ प्रदर्शन करने का दबाव हमें तोड़ने लगता है और हर वक्त आगे बने रहने की उम्मीद से जो तनाव निर्मित होता है, उससे हम श्रेष्ठ प्रदर्शन तो नहीं कर पातें, बल्कि हमारा प्रदर्शन औसत प्रदर्शन से भी नीचे आ जाता है । संभवतः जिस दुनिया में हम रहते हैं, उस दुनिया में तनाव निर्मित होना अनिवार्य बन चुका है ।
आज हम ने जिस जीवन शैली को अंगीकार किया है, जिस तरह से प्रतियोगिता का वातावरण निर्मित किया है, उसमें हम ने जीतना ही सबसे महत्वपूर्ण बना दिया है, इस तरह के समाज में हमें तनाव के लिए तैयार रहना होगा । किन्तु यहाँ पर एक और महत्वपूर्ण बात पर ध्यान देना जरूरी है, तनाव कोई बुरी चीज नहीं है, बशर्ते वह आपके नियंत्रण में हो । दुर्भाग्य से ज्यादातर बार हम तनाव नियंत्रित करें, इसके विपरीत तनाव हमें नियंत्रित करने लगता है । इससे होता यह है कि धीरे-धीरे मानसिक तौर पर बिखराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । हमारा प्रदर्शन दिन-प्रतिदिन नीचे की ओर सरकने लगता है, हमारा आत्मविश्वास घटने लगता है जिससे हम अंदर से टूटने लगते हैं ।
ऐसा ही कुछ हुआ जोनाथन ट्रॉट के साथ । जोनाथन अपने आत्मचरित्र 'अनगार्डेड' में लिखते हैं, “मैं इस प्रकार तनाव से घिरा था कि हर बार ग्राउंड पर ना जाने के बहाने ढूंढता था । हर बार किसी तरह बल्ला उठाने से बचने की कोशिश करता था । मैं उम्मीद करता था कि आज जोर से बारिश हो जाए और पिच से कवर्स ही ना हटें तथा मैच शुरू ही ना हो । पर ऐसा नहीं होता था । मुझे ट्रेक सूट पहन कर बल्ला थामें ग्राउंड पर पहुँचना ही पड़ता था । जैसे ही में ड्रेसिंग रूम से निकलकर ग्राउंड पर पहुँचता था, मुझे वह दबाव महसूस होने लगता था, मैं तनावग्रस्त हो जाता था, जैसे कि मैं किसी प्रेशर कुकर में हूँ एवं आज हर कोई मुझ पर फैसला सुनाने वाला है ।” इस तनाव के एहसास ने जोनाथन ट्रॉट को तोड़ कर रख दिया तथा दुनिया का एक बेहतरीन बल्लेबाज शायद इस तनाव के सामने बोल्ड हो गया ।
जोनाथन ने बचपन में एक ही सपना देखा था, इंग्लैंड की तरफ से क्रिकेट खेलने का और एक सफल इंटरनेशनल क्रिकेट खिलाड़ी बनने का । वह एक बेहतरीन दाएँ हाथ का बल्लेबाज था और कभी-कभी मीडियम पेस बॉलिंग भी करता था । उनकी उत्कृष्ट बल्लेबाजी को देखते हुए, उन्हें अगस्त २००९ में इंग्लैंड के टेस्ट टीम में जगह मिली ।
जोनाथन ने इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और पहले ही मैच में शतक जड़ दिया, इस तरह से क्रिकेट केरियर की एक सफल और बेहतरीन शुरुवात हुई । धीरे-धीरे उनके क्रिकेट केरियर ने सफलताओं की बुलंदियों को छूना शुरू किया । जोनाथन ने ६८ वनडे मैचेस् में ५१.२५ की औसत से बेहतरीन २८१९ रन बनाएं, जिन में २२ अर्धशतक और ४ शतक सम्मिलित थे । २०११ में उन्हें ‘क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया । जोनाथन सही मायने में एक सफल और बेहतरीन खिलाड़ी थे । अपने क्रिकेट केरियर में बेहद अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे ।
दुर्भाग्य से धीरे-धीरे श्रेष्ठ प्रदर्शन करने का तनाव उन पर बढ़ता ही गया, इससे जोनाथन अंदर ही अंदर नकारात्मकता से घिरने लगे । उनके आत्मचरित्र 'अनगार्डेड' की शुरुवात में एक चित्र दिखाया गया है, एक बाथरूम में जोनाथन खड़े हैं, मानों यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि किस प्रकार वह एक छोटी सी जगह में अटक चुके हैं और वहाँ से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं । उस बाथरूम में एक आईना है, जोनाथन उस आईने में स्वयं का चेहरा देखते हैं । इस आईने में जो जोनाथन का चेहरा दिखाई देता है, उस चेहरे पर झुर्रियां पड़ी हैं, दांत टूट चुके हैं और वह खुद से कहते है, ‘मेरे बाल झड़ रहे हैं और समय के साथ-साथ ज़िन्दगी से आनंद भी अदृश्य हो रहा है । अब बल्लेबाजी करना मानो खुद पर अत्याचार करने जैसा महसूस हो रहा है ।'
जोनाथन मानसिक तौर पर टूटने लगे थे, अब उन्हें बल्लेबाजी करते समय पहले जैसा मजा नहीं आता था । उन्हें अनुभव होता था कि उनके ही एक ताकतवर सपने ने उन्हें कैद कर दिया है । वह उस तनाव से मुक्त होना चाहते थे, उस मानसिकता को तोड़कर बाहर निकलना चाहते थे ।
वर्ष था २०१३ । एशेज सीरीज । इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया । पूरी दुनिया को पता है, एशेज सीरीज को जीतना दोनों टीमों के लिए क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने जैसा ही है । यह एकदम भारत पाकिस्तान के बीच होने वाले मैचेस् जैसा । उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के तेज और सबसे बेहतरीन बॉलर मिशेल जॉनसन अपनी पूरी लय में थे । मिशेल की तेज गति से आने वाली बाउंसर को खेलना पूरी इंग्लैंड टीम के लिए बेहद कठिन साबित हो रहा था । उनकी तेज और उछलती हुई गेंदे इंग्लैंड की टीम पर कहर बरपा रही थी । जोनाथन को मिशेल की गेंदबाजी के सामने टिकना मुश्किल हो रहा था और इस वजह से उनका मानसिक तनाव बढ़ता ही जा रहा था ।
आउट होने की चिंता उनकी सकारात्मक मानसिकता को तोड़ रही थी । शायद अब वह प्रेशर कुकर फटने की स्थिति में पहुँच चुका था । इंग्लैंड की हार के साथ पहला टेस्ट मैच खतम हुआ । ऑस्ट्रेलिया के डेविड वॉर्नर ने उन्माद में कहा, “जोनाथन कमजोर है और बेहद डरे हुए हैं ।” मीडिया में भी इसी तरह की रिपोर्टिंग होने लगी । टीवी स्टूडियो में बैठकर इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर जोनाथन की बल्लेबाजी में खामियाँ ढूंढने लगे । इसका परिणाम यह हुआ, कि जोनाथन पर और दबाव बढ़ने लगा, यह दबाव इस तरह बढ़ा कि अंततः वह मानसिक तौर पर बिखर गये ।
खुद की मानसिकता को संभालना उनके लिए असंभव साबित हुआ । उन्होंने उस दबाव और तनाव के सामने हार मान ली । टेस्ट सीरीज बीच में ही छोड़कर जोनाथन घर चले गये । एक बेहतरीन खिलाड़ी तनाव के सामने हार गया । उसकी मानसिकता ने उसे पराजित किया । उसके तनाव ने उसे तोड़ दिया । कुछ महिनों बाद उन्होंने क्रिकेट में वापसी का प्रयास किया पर वह सफल नहीं हो पाए और अंत में क्रिकेट से रिटायरमेंट ले लिया ।
अब सवाल यह है, क्या इस स्थिति से निपटा जा सकता था? शायद ‘हाँ’ ।
किन्तु इसके लिए हमें किस तरह से अपने अंदर तनाव निर्मित होता है, उस प्रक्रिया को समझना होगा, तनाव से निपटने की हमारी वर्तमान रणनीतियों को समझना होगा और तनाव का प्रबंधन करने के नए कौशल सीखने होंगे । तनाव से निपटने के लिए जो रणनीतियाँ हैं, उनका अभ्यास करना होगा । समस्या निर्माण होने के बाद उसे सुलझाने में समय बर्बाद करने से अच्छा है, कि पहले से ही तैयारी की जाए । एन.एल.पी. में हम इस तनाव की दिमागी प्रक्रिया को समझते हैं और उसे नियंत्रित करने के कुछ बेहतरीन टूल्स् सीखते हैं ।
समस्या का उसके छोटे स्वरूप में ही समाधान करना ज्यादा समझदारीपूर्ण होता है, क्या आप मुझ से सहमत हैं?
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Sandip Shirsat
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Summary:
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