लिनियर थिंकिंग और नॉन लिनियर थिंकिंग
मैनेजमेंट प्रोफेसर डब्लू एडवर्ल्ड डेमिंग ने १९४० के आसपास अमरिका की इंडस्ट्री को यह बताना शुरू किया कि, अगर अमरिकन उद्योग को सफल होना है, तो उन्हें उनके प्रोडक्ट्स को और बेहतर बनाना होगा, प्रोडक्ट की क्वालिटी अच्छी करने पर फोकस करना होगा । पर इस विचार को अमरिकन इंडस्ट्री ने महत्त्व नहीं दिया, क्योंकि अमरिकन इंडस्ट्री का मानना था कि अगर प्रोडक्ट को बेहतर बनाना है, तो उसकी कीमत भी बढ़ानी पड़ेगी और उसके लिए इंडस्ट्री तैयार नहीं थी ।
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अमरिकन इंडस्ट्री द्वारा अस्वीकार होने के बाद डेमिंग जापान पहुँचे । वहाँ जाकर उन्होंने वहीं बातें जापनीज इंडस्ट्री को बताना शुरू किया । जापान की इंडस्ट्री उस वक्त 'कानबान' नामक संकल्पना पर काम कर रही थी । जिसमें प्रोडक्ट तैयार करने में, प्रोडक्ट को बेहतर करने में और प्रोडक्ट में जरूरी बदलाव करने में मैनेजमेंट के साथ-साथ कामगारों की अहम भूमिका होती थी ।
जापान ने डेमिंग की संकल्पना और कानबान संकल्पना को एकत्रित करते हुए एक नयी संकल्पना ईज़ाद की और यह नयी संकल्पना बेहतरीन साबित हुई जिसे ‘टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट’ नाम दिया गया । जिसका मूल उद्देश्य था, ‘किस प्रकार से लागत को कम करते हुए प्रोडक्ट क्वालिटी को बढ़ाया जाए ।’ यह उद्देश्य अमरिकन इंडस्ट्री के उस विचार से पूरी तरह से विपरीत था, जिसका मानना था कि अगर क्वॉलिटी को बेहतर बनाना है, तो प्रोडक्ट की कीमत को बढ़ाना होगा और अमरिकन इंडस्ट्री की यह अवधारणा ही मूलतः गलत थी ।
डेमिंग के विचारों के आधार पर जापान ने जो काम किया, वह जापान के लिए गेम चेंजर साबित हुआ । जापान की इंडस्ट्री बेहतर हुई, ‘कम कीमत और सबसे बेहतर क्वालिटी’, यह जापानीज इंडस्ट्री का मूल मंत्र बना और इस तरीके से जापान में बनें प्रोडक्ट्स ने अमरिका में धूम मचाई और अमरिकन इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी । दुर्भाग्य से जिस तरीके से डेमिंग सोच रहे थे, शायद पूरी अमरिकन इंडस्ट्री उस तरीके से नहीं सोच पाई और जिसका खामियाजा इंडस्ट्री को भुगतना पड़ा ।
अब सवाल है कि यह रचनात्मक सोच डेमिंग के दिमाग में किस तरह से निर्मित हुई? किस तरीके से डेमिंग इंडस्ट्री के दूसरे लोगों से अलग विचार कर पाए? क्यों डेमिंग को वह दिखाई दिया, जो बाकी लोग नहीं देख पाए थे?
इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें ‘थिंकिंग’ के ऊपर सोचना होगा ।
कॉग्निटिव साइकोलॉजी में पिछले कुछ वर्षों में जो रिसर्च हुए हैं, उन रिसर्च के अनुसार थिंकिंग दो तरह की होती है - १. लीनियर थिंकिंग २. नॉन लीनियर थिंकिंग
१. लीनियर थिंकिंग - हमारा दिमाग ज्यादातर सीधी दिशा में विचार करता है और कई बार यह सीधी दिशा में किया हुआ विचार या लीनियर थिंकिंग हमारी मदद करती है । उदाहरण के तौर पर आपके पास किताबों का एक शेल्फ है, जिस में ज्यादा से ज्यादा ५० किताबों को रखा जा सकता है । अब अगर आपको २०० किताबें रखनी हैं, तो आपके पास कितने शेल्फ होने जरूरी है? जवाब आसान है, ५० किताबों के लिए एक शेल्फ और २०० किताबों के लिए चार शेल्फ जरूरी होंगे । अगर एक चाय की कीमत ₹ १० है तो १० चाय खरीदने के लिए कितने रुपए लगेंगे? ₹ १०० । इन दो सवालों के जवाब ढूंढने के लिए आपके दिमाग ने जिस तरह सोच विचार किया उसे हम लीनियर थिंकिंग कहेंगे ।
ज़िन्दगी जीने के लिए यह लीनियर थिंकिंग बेहद जरूरी है पर इस प्रकार की सोच के साथ कुछ समस्याएँ खड़ी होती है । जैसे कि...
१. इस सोच को जब हम उल्टा करते हैं, तब भी उसका वहीं अर्थ निकलता है, जो पहले निकला था, और इसलिए यहाँ पर कारण और परिणाम (cause & effect) ऐसा कुछ नहीं होता । उदाहरण के तौर पर बेरोजगारी से मंदी पैदा होती है, या मंदी से बेरोजगारी? अब यह सवाल ही इस तरीके से बना हुआ है कि इसका जवाब लीनियर थिंकिंग से आना संभव नहीं है, क्योंकि इस सवाल का जवाब ढूंढना, ‘अगर एक चाय के कप की कीमत ₹ १० है, तो १० चाय के कप खरीदने के लिए कितने रुपये लगेंगे?’ इस सवाल का जवाब ढूंढने जितना आसान नहीं होगा । बेरोजगारी से मंदी पैदा होती है, या मंदी से बेरोजगारी? इस सवाल में हमें कॉज एंड इफेक्ट पता नहीं चल रहा है । क्या बेरोजगारी कॉज है जिसका मंदी इफेक्ट है, या मंदी कॉज है जिसका बेरोजगारी इफेक्ट, यह हमें पता नहीं चल रहा है । इस वजह से इस सवाल को समझने के लिए लीनियर थिंकिंग हमारी ज्यादा मदद नहीं कर सकती ।
२. ऐसा भी हो सकता है कि बेरोजगारी और मंदी दोनों ही परिणाम हो जिनका कारण कुछ दूसरा ही हो जो अज्ञात है । पर इस अज्ञात कारण को ढूंढने में लीनियर थिंकिंग हमारे ज्यादा काम की नहीं है ।
३. लीनियर थिंकिंग में कहाँ जाकर रुकना है, इसका कोई अंदाजा नहीं होता । कभी-कभी इस प्रकार की थिंकिंग समस्या को सुलझाने की बजाय समस्या को उलझाती है । उदाहरण के लिए ‘मैनेजर ने गलत निर्णय लिया’, तो क्या यह मैनेजर की गलती है? क्या मैनेजर के पास गलत सूचना पहुंचाई गयी? जिन्होंने गलत सूचना पहुंचाई उनको किसने नियुक्त किया? क्या उन्हें नियुक्त करने वाले की गलती है? और यह चलता जाएगा, क्योंकि लीनियर थिंकिंग के साथ जब हम समस्या के पीछे छिपे हुए कारण को ढूंढने निकलते हैं, या समस्या किस वजह से निर्मित हुई उसे ढूंढने निकलते हैं, तब कई बार समस्या सुलझती कम है, उलझती ज्यादा है । इससे जिस कारण समस्या निर्मित हो रही है, उस पैटर्न को ढूंढने के बजाय हम समस्या निर्माण के लिए दोष देने के लिए किसी की खोज में लग जाते हैं ।
लीनियर थिंकिंग की यह सोच हमारे स्कूल से निर्मित होती है, जहाँ पर हमें यह सिखाया जाता है कि हर सवाल का एक ही सही जवाब होता है । स्कूल में हम उन्हीं समस्याओं को हल करते हैं, जो समस्याएँ सीमित होती है और जिनकी कोई सटीक संरचना होती है । पर जब हम इस विशाल और जटिल दुनिया में प्रवेश करते हैं, तब समझ में आता है कि यहाँ पर समस्याएँ असीम हैं जिनकी कोई निश्चित संरचना नहीं होती, ना ही उनका कोई एक सटीक जवाब मिलना भी संभव होता है ।
२. नॉन लीनियर थिंकिंग - यहाँ पर हम अपने रचनात्मक विचारों के साथ खेलते हुए समस्या सुलझाने के अलग अलग तरीके ढूंढते हैं । यहाँ पर ‘अगर एक चाय की कीमत ₹ १० है, तो १० चाय के कप खरीदने के लिए १०० रुपए लगेंगे’, इस तरह से विचार नहीं होता ।
अब इस समस्या पर थोड़ा गौर करें,
किस प्रकार से प्रतिस्पर्धी की तुलना में बेहतर प्रोडक्ट्स बनाये जा सकते हैं?
अब इस प्रकार की समस्याओं को सुलझाने के लिए लीनियर थिंकिंग के बजाय नॉन लीनियर थिंकिंग ज्यादा बेहतर साबित हो सकती है । जिससे हम समस्या में अंतर्भूत सारे तत्वों के बीच का संबंध ढूंढ कर एक बेहतर समाधान की तरफ यात्रा कर सकते हैं । यहाँ पर अनेक समाधान सही साबित हो सकते हैं और इन अनेक समाधानों में से किसी एक बेहतर समाधान को भी आप चुन सकते हैं ।
लीनियर थिंकिंग से नॉन लीनियर थिंकिंग की तरफ
समस्या: कंपनी में लोग स्वप्रेरणा या सेल्फ मोटिवेशन से काम नहीं करतें ।
लीनियर थिंकिंग - स्वप्रेरणा के ऊपर एक ट्रेनिंग सेशन रखो ।
नॉन लीनियर थिंकिंग - कर्मचारी मोटिवेटेड नहीं है, क्या इसमें मैनेजमेंट की बनायी हुई पॉलिसीज का भी हाथ हो सकता है? क्या कंपनी का कल्चर ही कुछ ऐसा है, जिस से यह समस्या खड़ी हो रही है? क्या कर्मचारियों को जो वेतन मिल रहा है, वह मार्केट रेट के हिसाब से है? क्या हम कुछ ऐसी पॉलिसीज बना सकते हैं, जिस से लोगों को मोटिवेशन का एहसास हो?
इस तरह नॉन लीनियर थिंकिंग से हम इस समस्या में लिप्त सारे तत्वों के बीच का संबंध ढूंढ कर एक बेहतर समाधान की तरफ बढ़ सकते हैं । इस समस्या को सुलझाने में अनेक समाधान सही साबित हो सकते हैं और जरुरी हो तो इन अनेक समाधानों में से किसी बेहतर समाधान को या एक से ज्यादा समाधानों को हम चुन सकते हैं ।
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Sandip Shirsat
Executive Leadeship Coach & Trainer, Founder & CEO of IBHNLP
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Summary:
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Linear Thinking and Non-Linear Thinking
In this blog, the author has tried to distinguish between Linear Thinking and Non-Linear Thinking. Actually any kind of thinking distinguishes us from other living beings. All our sorrows & joys are the result of the thinking process. The question is: Can we train or condition our thinking for the desired outcome at our will?
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