सफल होने के लिए शुरुवाती दौर में एक धुंधलासा सपना भी काफी है
क्या आपको अपने सपनों को साकार करना है? क्या आपको एक सुनहरे भविष्य का निर्माण करना है? क्या आपको अपने सपनों में जान डालनी है?
अगर हाँ, तो कुछ महत्वपूर्ण बातों पर आपको गौर करना होगा । अगर आपको एक सुनहरे भविष्य का निर्माण करना है, तो ...
१. आपके पास दूरदृष्टि होना जरूरी है ।
२. आपके पास एक बड़ा और विशेष लक्ष्य होना चाहिए ।
३. उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक सटीक योजना होनी चाहिए ।
४. उस योजना पर पूरी ताकत के साथ अमल करने का जज्बा होना चाहिए ।
आगे पढ़ने से पहले इन चार ‘सफलता के बुनियादी सिद्धांतों’ पर जरा सोचिए ।
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क्या आपको नहीं लगता कि यह चारों सिद्धांत बेहद महत्वपूर्ण है? क्या आपके जीवन में इन सिद्धांतों की स्पष्टता है? अगर ऊपर लिखे चार सिद्धांत, सवाल के रूप में होतें, तो क्या इन चारों सवालों का जवाब ‘हाँ’ होता?
ये चार सिद्धांत आपको अपने भविष्य के संदर्भ में स्पष्टता देंगे, आपको आगे बढ़ने की हिम्मत देंगे और विपरीत परिस्थितियों में भी आप अडिग होकर खड़े रहेंगे । अगर आपके जीवन में ये चार सिद्धांत हैं, तो आपका सपना जरूर साकार होगा, आप एक बेहतरीन भविष्य का निर्माण कर पाएंगे और सफलताओं की बुलंदियों को छू सकेंगे । ज़िदगी में आगे बढ़ने के लिए यह चार सिद्धांत बेहद जरूरी है, असल में यह चार सिद्धांत सफलता की बुनियाद है ।
अब सवाल यह है कि अगर आपके जीवन में ये चार सिद्धांत नहीं हैं, तो क्या आप सफल नहीं हो सकेंगे? इस सवाल पर कुछ विराम लेकर सोचिए ।
अब हम तीन कहानियों के माध्यम से इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं ।
प्रथम कहानी -
वक्त था १९८१ का, जब भारत में आईटी क्षेत्र का शुरुवाती दौर था । उस समय पूरे भारतवर्ष में कुछ गिनी-चुनी कम्पनियाँ ही इस क्षेत्र में काम करती थीं । उस वक्त पटनी कंप्यूटर सिस्टम नामक एक कंपनी पुणे में कार्यरत थी । कंपनी में सात दोस्त काम करते थे और जब भी मौका मिलता तब स्वयं की कंपनी स्थापित करने के विषय में बातें करते थे । एक दिन इन सातों दोस्तों ने हिम्मत दिखाई और खुद की कंपनी खोलने के लिए इस्तीफे दे दिए । कुछ ही दिनों में उन्होंने एक कंपनी की स्थापना की जिसे नाम दिया गया इन्फोसिस । अब कंपनी को चलाने के लिए कैपिटल की जरूरत थी और इन सातों दोस्तों के पास पैसे नहीं थे । इन सातों दोस्तों में से एक, नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा से ₹ १०,००० लिए और इस तरह से कंपनी का कामकाज शुरू हुआ । आज यही इन्फोसिस भारत की आईटी क्षेत्र में सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है, जिसमें १,२५,००० से ज्यादा लोग काम करते हैं और हर वर्ष अरबों डॉलर का राजस्व निर्मित होता है ।
स्थापना के वर्षों बाद जब इन्फोसिस एक बड़ी कंपनी के रूप में स्थापित हो चुकी, एक इंटरव्यू में सुधा मूर्ति से पूछा गया, क्या आपको विश्वास था कि एक दिन इन्फोसिस आईटी क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी कंपनी बनेगी? इस पर उनका जवाब था, उन दिनों हमारा सिर्फ एक ही लक्ष्य था, किसी भी हाल में बाजार में टिके रहना । सारी जद्दोजहद कंपनी के अस्तित्व को बचाने के लिए थी । छोटी-छोटी बातों के लिए हमें संघर्ष करना पड़ता था । हमारी कंपनी छोटी थी इसलिए कोई हमारे पास काम लेकर नहीं आता था, हमें ही काम की तलाश करनी पड़ती थी और काम मिलने के बाद उसे लगन और समर्पण के साथ हम पूरा करते थे । धीरे-धीरे स्थिति बदलती गयी, भविष्य निर्मित होता गया ।
यहाँ इस जवाब में कुछ बातें बेहद स्पष्टता से समझ में आती है । इन सातों दोस्तों ने बेहद गंभीर दूरदृष्टि के साथ कोई बड़ा और खास लक्ष्य नहीं रखा था, ना उनके पास कोई सटीक योजना थी, जिस पर वह पूरी ताकत के साथ अमल करतें । उस शुरुवाती दौर में उनके पास सिर्फ एक बात थी, ‘कुछ करने का जज्बा और एक अस्पष्ट दिशा ।’
द्वितीय कहानी -
कंप्यूटर्स के क्षेत्र में एच पी एक बड़ा नाम है । एच पी के संस्थापक बिल ह्यूलेट और डेव पैकर्ड कहते हैं, हम ने निर्णय लिया कि पहले कंपनी खड़ी करते हैं और बाद में पता लगाएंगे कि उस कंपनी में क्या निर्मित करना है और इस लक्ष्य के साथ एच पी के संस्थापक आगे बढ़ते रहें । उस शुरुवाती दौर में उनका सिर्फ एक ही मकसद था, कुछ काम ढूंढना, जिससे लाइट बिल और बाकी के खर्चे निकल सकें । वे दोनों कहते हैं कि जब हम ने कंपनी स्थापित की तब हमारे पास कोई योजना नहीं थी, ना ही कोई दूरदृष्टि से निर्मित बड़ा लक्ष्य था, हम तो बस अवसरवादी थे । हम ने वह सब किया जिससे हमें थोड़े से पैसे मिल सके । हम ने टेलीस्कोप के लिए जरूरी क्लॉक ड्राईव बनाये, हम ने एक यंत्र बनाया, जो यूरिनल फ्लश को ऑटोमेटिक करता था और वजन कम करने के लिए हम ने एक शॉक मशीन भी बनायी थी । हमारे पास उस वक्त सिर्फ $ ५०० की पूंजी थी और हम हर क्षेत्र में हाथ पैर मार रहे थे, जो कुछ संभव था, वह हम कर देते थे । समय के साथ स्थिति व्यवस्थित होती गयी और ‘एच पी’ का सपना आकार लेता गया ।
कई बार सपने को विकसित होने में समय लगता है । आप अलग अलग चीजों को आजमाते हैं, उसमें से कुछ चलती है और कुछ नहीं चलती है, पर इससे आपको अंदाजा आने लगता है कि क्या करना चाहिए । बहुत कम ही ऐसा होता है कि शुरुवाती दौर में एक भव्य और दुस्साहसिक सपना दिमाग में पूरी तरह से स्पष्ट होता है । कई बार यह स्पष्टता आने के लिए समय लगता है । संक्षेप में, एच पी के पास भी शुरुवाती दौर में बेहद गंभीर दूरदृष्टि के साथ कोई बड़ा और खास लक्ष्य नहीं था, ना उनके पास कोई सटीक योजना थी, जिस पर वह पूरी ताकत के साथ अमल करते । उस शुरुवाती दौर में उनके पास सिर्फ एक बात थी, ‘कुछ करने का जज्बा और एक अस्पष्ट दिशा ।’
तृतीय कहानी -
अमिताभ बच्चन ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी की और पैसे कमाने के लिए उन्होंने कोलकाता जाने का निर्णय लिया । शुरुवाती दौर में कोलकाता की एक शिपिंग कंपनी में उन्हें ब्रोकर का काम मिला । ब्रोकर के काम में उन्हें जितने पैसों की उम्मीद थी, उससे बहुत कम मिलता था । उन्हें कुछ अलग करना था पर कोई योजना नहीं थी और ना ही कोई स्पष्ट सपना ।
कुछ वर्षों बाद ब्रोकर का काम छोड़कर अमिताभ बच्चन मुंबई आ गये । उन्होंने फिल्मों में बतौर एक्टर हाथ आजमाने का निर्णय लिया । अमिताभ की हाइट एक्टर बनने के रास्ते में रुकावट बनी, उनकी हाइट ६ फीट ३ इंच थी, आम एक्टर की तुलना में वह थोड़े ज्यादा ही लंबे थे, इसलिए डायरेक्टर उन्हें फिल्म में लेने से कतराते थे ।
आखिरकार उन्हें लगा कि उनकी आवाज अच्छी है, इसके आधार पर उन्हें रेडियो में आराम से काम मिल जाएगा और फिर वह ऑल इंडिया रेडियो के ऑडिशन में हिस्सा लेने पहुँच गये । दुर्भाग्य से उस ऑडिशन में भी वह फेल हो गये । अंत में उन्होंने मुंबई छोड़ने का निर्णय लिया और उसी समय में ‘सात हिंदुस्तानी’ नामक एक फिल्म में उन्हें काम मिल गया और यहाँ से धीरे-धीरे उनका सपना आकार लेने लगा ।
अमिताभ बच्चन एक इंटरव्यू में खुद कहते हैं, ‘बचपन में मैंने कभी भी फिल्मों में काम करने का सपना नहीं देखा था । जब मैं इलाहाबाद में फिल्में देखता था, तब भी मैंने कभी भी यह कल्पना नहीं की थी कि एक दिन मैं भी फिल्मों का हीरो बनूंगा’ ।
इसका मतलब यह हुआ, कई बार सपनों को निर्मित होने में और ठीक-ठाक आकार लेने में बहुत समय लगता है । आपको अलग-अलग चीजों को आजमाना पड़ता है, तब जाकर आप एक ऐसा क्षेत्र खोज निकालते हैं, जो आपका वास्तविक केरियर होता है । अमिताभ के पास भी शुरुवाती दौर में बेहद गंभीर दूरदृष्टि से निर्मित कोई बड़ा और खास लक्ष्य नहीं था, ना उनके पास कोई सटीक योजना थी जिस पर वह पूरी ताकत के साथ अमल कर सकते । उस शुरुवाती दौर में उनके पास सिर्फ एक बात थी, ‘कुछ करने का जज्बा और एक अस्पष्ट दिशा ।’
इसलिए शुरुवाती दौर में सिर्फ एक बात अनिवार्य है और वह है ‘कुछ करने का जज्बा और एक अस्पष्ट दिशा ।’ तो क्या इसका मतलब यह हुआ,
१. आपके पास दूरदृष्टि होना जरूरी है ।
२. आपके पास एक बड़ा और खास लक्ष्य होना चाहिए ।
३. उस लक्ष्य को पूरा करने की एक सटीक योजना होनी चाहिए ।
४. उस योजना को पूरी ताकत के साथ अमल करने का जज्बा होना चाहिए ।
इन चारों ‘सफलता के बुनियादी सिद्धांतों’ की सफलता, हासिल करने के लिए जरूरत नहीं है । ब्लॉग पढ़ने के बाद अगर आप यह सोच रहे हैं, तो शायद मेरी बात आप तक नहीं पहुँची ।
इससे धीरे-धीरे ‘सफलता के बुनियादी सिद्धांतों’ की दिशा में आपकी यात्रा शुरू होगी ।
१. दूरदृष्टि निर्मित होगी ।
२. एक बड़ा और खास लक्ष्य आकार लेने लगेगा ।
३. उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक सटीक योजना तैयार होने लगेगी ।
४. उस योजना पर आप पूरी ताकत के साथ अमल करना शुरू कर देंगे ।
आशा करता हूँ कि यह ब्लॉग आपको अच्छा लगा होगा, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । चलो तो फिर मिलते हैं अगले ब्लॉग में, तब तक के लिए ...
एन्जॉय योर लाइफ एंड लिव विथ पैशन !
Sandip Shirsat
Executive Leadeship Coach & Trainer, Founder & CEO of IBHNLP
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Summary:
If you are searching for the answers to the following questions:
What is the secret of success in life? What is the secret of success in studies? What is the key to success? What is the greatest secret of success? What makes a person successful? How can I be a successful essay? If ‘yes’ then this blog is for you!
Everyone wants to move ahead in life, but very few are ready to dedicate their life for that. Just as Dr A.P.J. Abdul Kalam says: “Dream, Dream Dream. Dreams transform into thoughts. And thoughts result in action.” The basic requirement is a dream. Even it is vague at the initial level, doesn’t matter.
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